ज्योतिष के मुताबिक, कुंडली में पंचम भाव से संतान सुख, विद्या, बुद्धि, ज्ञान, प्रेम, रोमांस, और खुशियों का पता चलता है. पंचम भाव को संतान सुख का भाव माना जाता है. संतान सुख के लिए, कुंडली में पंचम भाव का विश्लेषण करना ज़रूरी होता है. अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में संतान योग कारक पुरुष हो, तो पुत्र और कारक गृह स्त्री हो, तो पुत्री प्राप्ति के योग बनते हैं।
कुंडली में जब संतान प्राप्ति कारक ग्रह बृहस्पति की दशा आती है अथवा कुंडली के पंचम भाव के स्वामी की दशा प्राप्त होती है या उन ग्रहों की दशा प्राप्त होती है, जो पंचम भाव से संबंध बना रहे हों और शुभ ग्रह हों तो जातक को संतान प्राप्ति के योग बन जाते हैं.
कुंडली गुण मिलान एक अद्भुत एवं कठिन कार्य हैं, जिसमे कई ज्योतिष्य संयोग और नियमों को परखा जाता हैं. गुण मिलान की प्रक्रिया दो तरह से की जा सकती हैं, केवल प्रचलित नाम के उपयोग से, या जन्मपत्री के द्धारा, जो की जन्म तारीख के आधार पर बनाई जाती हैं, जन्मपत्री में जन्म राशि का उपयोग कर के गुण मिलान किया जाता हैं, तो यदि आप अपने जन्म नाम को जानते हैं।
कुंडली मिलान या गुण मिलान वैदिक ज्योतिष में विवाह के लिए कुंडलियों का मिलान है | हिन्दू धर्म और खासकर हिंदुस्तान में विवाह बुजुर्गो और माता पिता के आशीर्वाद से संपन होते हैं।
भवन निर्माण के विज्ञान के लिए रचित शास्त्र ‘वास्तु शास्त्र’ ज्योतिष शास्त्र का ही एक विकसित भाग है | ज्योतिष शास्त्र और वास्तु शास्त्र न सिर्फ एक दुसरे के पूरक है बल्कि दोनों के बीच में एक गहरा सम्बन्ध भी हैं | जहाँ ज्योतिष एक वेदांग है तो वही वास्तु शास्त्र अथर्ववेद के एक उपवेद स्थापत्य वेद पर आधारित है | दोनों ही प्राचीनकाल में विकसित हुए विज्ञान है | इनका प्रयोजन प्रकृति के छिपे हुए रहस्यों को समझकर मानव जीवन को बेहतर करना रहा है |
वास्तु और ज्योतिष दोनों में ही मानव पर पड़ने वाले सृष्टि के प्रभावों का अध्ययन किया जाता है | ज्योतिष में जहाँ प्रत्यक्ष तौर पर व्यक्ति की कुंडली के जरिये यह अध्ययन किया जाता है तो वही वास्तु में भी भवन की संरचना का व्यक्ति के अचेतन मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है |
ज्योतिष शास्त्र में नवग्रह को विशेष स्थान प्राप्त है. नवग्रह में गुरु, मंगल, शनि, बुध, शुक्र, राहु और केतु ग्रह आते हैं. ज्योतिष के अनुसार इन नवग्रहों की स्थिति और गति हमारे जीवन पर शुभ और अशुभ प्रभाव पड़ता है. कहते हैं कि इन ग्रहों के प्रतिकूल होने पर जीवन में परेशानियां आनी शुरू हो जाती हैं. व्यक्ति कई तरह की समस्याओं से घिर जाता है. इन ग्रहों की प्रतिकूल स्थिति को ही ग्रहदोष के नाम से जाना जाता है. ज्योतिषशास्त्र में ग्रहों के दोष को दूर करने के लिए कई उपायों के बारे में बताया गया है. अगर इनका पालन कर लिया जाए, तो कुंडली में व्याप्त नवग्रह दोषों से मुक्ति पाई जा सकती हैं।
ज्योतिषियों का मानना है कि कुंडली में शामिल चंद्र दोष को दूर करने के लिए पूर्णिमा की रात में चंद्रदेव को जल अर्पित करना चाहिए. इसके साथ ही चंद्र दोष दूर करने के लिए सफेद चीजें जैसे- चावल, शक्कर, दूध आदि का दान करें.
विवाह होने में देरी हो रही है या फिर शादी तय हो जाने के बाद भी रिश्ता टूट जाता है। कई बार ऐसा होता है कि रिश्ते तो आ रहे होते हैं लेकिन कहीं बात नहीं बन पा रही है तो ऐसी समस्याओं से निपटने के लिए ज्योतिष शास्त्र में गुरुवार के दिन करने के लिए कुछ विशेष उपाय बताए गए हैं। ज्योतिष शास्त्र के इन उपायों के करने से विवाह होने में आ रही सभी तरह की अड़चन दूर हो जाती हैं तो विवाह के शुभ योग बनने लग जाते हैं। गुरुवार के दिन किए जाने वाले ये उपाय काफी लाभकारी माने जाते हैं और इनका फल शीघ्र ही मिलता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, गुरुवार के दिन शीघ्र विवाह के लिए सुबह स्नान व ध्यान करके पीले वस्त्र धारण करें और केले के वृक्ष के नीचे गाय के देसी घी का दीपक जलाएं और इसके बाद बृहस्पति देव के 108 नाम का जप करें। ऐसा करने से विवाह के शुभ योग बनने लग जाते हैं और विवाह संबंधी शुभ समाचार मिल जाता है।
हमारे धर्म शास्त्रों में मुहूर्त के अनुसार कार्य करने की परम्परा बहुत पुरानी है, अलग-अलग कार्यों के लिए अलग-अलग शुभ मुहूर्त निर्धारित हैं, इन मुहूर्तों में कार्य प्रारंभ करने से उस कार्य की सफलता का प्रतिशत बहुत अधिक बढ़ जाता है. जीवन में खूब तरक्की मिलती है. देवउठनी एकादशी के साथ ही सभी शुभ कार्यों का श्री गणेश हो चुका है, अब सभी मांगलिक कार्य कराए जा सकते हैं।
ज्यादातर लोग शुभ मुहूर्त में किसी नए काम की शुरूआत करते हैं. लेकिन अगर आप किसी पंडित से संपर्क नहीं कर पा रहे हैं, आपको राशि या नक्षत्र दिखवाने का मौका नहीं मिल पा रहा है या फिर आपके पास पंचांग नहीं है ।
देव प्राण प्रतिष्ठा एक वैदिक अनुष्ठान है जिसमें भगवान की मूर्ति में प्राणों का आवाहन किया जाता है। यह अनुष्ठान किसी भी नए मंदिर, घर के पूजा स्थान, या देवालय में किया जा सकता है, ताकि वहां भगवान की उपस्थिति स्थापित हो सके। यह प्रक्रिया वैदिक मंत्रों और विशेष विधियों के माध्यम से की जाती है, जिसमें मूर्ति को एक जीवंत और पूजनीय स्वरूप प्रदान किया जाता है।
आध्यात्मिक उन्नति: इस अनुष्ठान के माध्यम से आपके जीवन में शांति, सुख और समृद्धि का आगमन होता है। प्राण प्रतिष्ठा से प्राप्त आशीर्वाद से आपके घर में हर कार्य शुभ और मंगलमय होता है। दिव्य संरक्षण: प्राण प्रतिष्ठा के बाद, मंदिर या मूर्ति भगवान की उपस्थिति से भरपूर हो जाता है। यह आपके परिवार को हर प्रकार के नकारात्मक प्रभावों से बचाता है और सुरक्षा प्रदान करता है।
कई लोग विदेश यात्रा या विदेश में बसने का सपना देखते हैं लेकिन हम सभी जानते हैं कि इस सपने को पूरा करना हमारे हाथ में नहीं होता है। आपने कई बार लोगों को कहते सुना होगा कि किस्मत में होगा तो विदेश जाने का भी मौका मिल जाएगा। किस्मत की ये बात कुंडली के ग्रहों और उनकी कुछ विशेष स्थिति पर निर्भर करती है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में विदेश यात्रा के योग हों तो उसे किसी ना किसी कारण से विदेश जाने का मौका मिल ही जाता है। ज्योतिष की मानें तो जब तक आपकी कुंडली में विदेश यात्रा के योग नहीं है तब तक इस दिशा में आपके सारे प्रयत्न विफल हो जाएंगे। तो चलिए जानते हैं कि कब किसी जातक को विदेश यात्रा का सुख मिलता हैें।
नवचंडी यज्ञ या दुर्गा सप्तशती या देवी महात्म्य हिंदू परंपरा में किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। कर्ता या कलाकार के जन्म विवरण के अनुसार पंडित द्वारा यज्ञ की तिथि तय की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इस यज्ञ को करने से कर्ता के सभी दुख, संकट, रोग और कष्ट तुरंत दूर हो जाते हैं।
नवचंडी यज्ञ आप को देवी माँ का आशीर्वाद प्राप्त करने में सहायता करता है। यदि आपका भाग्य आपके पक्ष में नहीं हैं, तो उन्हें अपने पक्ष में कार्य करने हेतु सहायक है। एक बार नवचंडी यज्ञ को पूर्ण विधि सहित करने से यह यज्ञ सब से अधिक ऊर्जावान और सकारात्मक माहौल बना देता है। नव चंडी यज्ञ हवन एक असाधारण, अतुलनीय और बड़ा यज्ञ है जो देवी माँ की शक्तियों को आपसे जोड़ती है।
वास्तु पूजा एक हिंदू अनुष्ठान है, जिसे किसी नए घर या ऑफ़िस में सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिए किया जाता है. इसे आम तौर पर ज्योतिषी तय किए गए शुभ समय पर किया जाता है. वास्तु पूजा के लिए ये बातें ध्यान में रखनी चाहिए।
वास्तु के मुताबिक, पूजा घर को उत्तर-पूर्व दिशा यानी ईशान कोण में बनाना चाहिए. ऐसा माना जाता है कि इस दिशा में पूजा करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। वास्तु पूजा के लिए शुक्ल पक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, और त्रयोदशी को शुभ माना जाता है। पूजा घर के नीचे या आस-पास शौचालय नहीं होना चाहिए पूजा घर में खंडित मूर्ति नहीं रखनी चाहिए।